लॉक डाउन में आर्थिक, सामाजिक रूप से पिछड़े

*”लॉक डाउन में आर्थिक, सामाजिक रूप से पिछड़े परिवार के बच्चों की हालत हुई और बदतर”
*
लॉक डाउन के कारण 15 करोड़ बच्चे और हो गए गरीब।

सुरेन्द्र कुमार । समस्तीपुर।

दुनिया भर में कोरोना महामारी से लड़ने के लिए बहुत सारे देशों में लॉक डाउन को सख्ती से अमल में लाया गया। इससे संक्रमण को रोकने में कितनी मदद मिली उसका पूरा आकलन अभी सामने नहीं आया है लेकिन उसकी वजह से जो दूसरे घातक परिणाम सामने आ रहे हैं उससे लड़ने में दुनिया को शायद ज्यादा मशक्कत करनी पड़ेगी।
इस लॉक डाउन में खास कर बच्चों पर क्या गुजरी है इस पर मीडिया में कोई खास तवज्जो नहीं दिया जा रहा है। गरीबी को लेकर दुनिया भर में जो एक तरह की उदासीनता रही है उसमें शायद 15 करोड़ और बच्चों के आंकड़े जुड़ने को भी बहुत गंभीरता से नहीं देखा जाएगा। मगर ध्यान रखने की जरूरत है कि नई बनती स्थिति मानवता के सामने गंभीर संकट की वजह बन सकती है। वैसे महामारी के पहले की स्थितियों में भी गरीब तबकों के लोगों को किसी तरह जिंदा रहने के लिए जद्दोजहद हीं करना पड़ता रहा है। अधिकार और सम्मान जैसी स्थिति उनके लिए सपने जैसी बातें रही हैं। किसी तरह अपनी जिंदगी की गाड़ी चला रहे थे। बीच में गुंजाइश निकाल कर उनमें से कई परिवार अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन लॉक डाउन के दौरान रोजी रोटी के उपाय खत्म हो गए तो न्यूनतम जरूरतों को भी पूरा करना भारी मुश्किल हो गया है।
यूनिसेफ के मुताबिक
कोविड-19 नें 15 करोड़ बच्चों को गरीबी में धकेल दिया है। इस तरह अब दुनिया भर में गरीबी के विभिन्न हालात में रह रहे बच्चों की संख्या करीब 1.2 अरब हो गई है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के एक नए विश्लेषण के मुताबिक इस साल की शुरुआत में कोविड-19 की महामारी शुरू होने के बाद दुनिया भर में 15 करोड़ बच्चे गरीबी के दलदल में धंस गए हैं।
यह विश्लेषण यूनिसेफ और बाल अधिकार संगठन सेव दी चिल्ड्रन ने किया है। यह पिछले बृहस्पतिवार को सामने आया है। इसके मुताबिक विभिन्न तरह की गरीबी में रह रहे बच्चे-जिनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, घर, पोषण, साफ-सफाई और जल तक पहुंच नहीं है, उनकी संख्या महामारी शुरू होने के बाद से 15 फीसदी बढ़ गई है।
विश्लेषण में कहा गया है कि विभिन्न तरह की गरीबी में जी रहे बच्चों की संख्या कोविड-19 के कारण बढ़कर करीब 1.2 अरब हो गई है। यूनिसेफ के एक बयान में कहा गया है कि विविध प्रकार की गरीबी के आकलन में 70 देशों के शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आवास, पोषण, स्वच्छता और जल के उपयोग के आंकड़े शामिल हैं। इसमें पता चला कि इनमें से करीब 45 फीसदी बच्चे अति आवश्यक जरूरतों में से कम से कम एक से वंचित हैं, उन देशों में जिनमें महामारी से पहले आकलन किया गया था।
यूनिसेफ का कहना है कि आने वाले महीनों में यह स्थिति और बदतर हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक अधिक संख्या में बच्चे गरीबी का सामना कर रहे हैं, इसके अलावा जो पहले से गरीब हैं, वे बच्चे और अधिक गरीब हो रहे हैं। यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरिटा फोरे कहती हैं कि कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण लाखों बच्चे और अधिक गरीबी की स्थिति में चले गए।
उन्होंने कहा है कि अधिक चिंता का विषय यह है कि हम इस संकट के अंत में नहीं बल्कि प्रारंभिक दौर में हैं। सेव दी चिल्ड्रेन की सीईओ इंगर एशिंग का कहना है कि इस महामारी नें इतिहास की सबसे बड़ी वैश्विक शिक्षा में आपातकाल की स्थिति पैदा की है, गरीबी बढ़ने के कारण सर्वाधिक संवेदनशील बच्चों और उनके परिवारों का इससे उबरना और भी कठिन हो जाएगा। फोरे ने कहा कि और अधिक बच्चे स्कूल, दवा, भोजन, जल और आवास जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित न हों इसके लिए राष्ट्रों को तत्काल कदम उठाने होंगे। लॉक डाउन की मार लगभग सभी क्षेत्रों पर पड़ी है। इसका सबसे ज्यादा शिकार गरीब तबकों को हीं होना पड़ा है। स्कूल बंद होने से पढ़ाई का एकमात्र आसरा बंद हुआ। परिवार में आमदनी का जरिया रुक जाने से न्यूनतम पोषण से वंचित और बीमार होने की हालत पैदा हुई। देखभाल में उदासीनता भी संभावित नतीजा रही और लॉकडाउन नें इनके अस्थाई तौर पर टिकने की जगह को भी आमतौर पर छीन लिया। स्कूलों के बंद होने की हालत में फिलहाल जो ऑनलाइन पढ़ाई का विकल्प पेश किया गया है वह संसाधनों और प्रशिक्षण के अभाव में गरीब तबकों को हीं शिक्षा के दायरे से बाहर करेगा। इसका सीधा असर गरीबी में जीवन गुजारने वाले बच्चों की दशा और ज्यादा खराब होने के रूप में सामने आएगा। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल से खबर आई कि वहाँ लोक डाउन की वजह से उपजे हालात में बाल मजदूरों की तादाद में 105 फीसद की बढ़ोतरी हुई। बालिकाओं की हालत और ज्यादा खराब है। ऐसी कई घटनाएं भी सामने आ रही है कि पढ़ाई के लिए मोबाइल नहीं मिलने पर कई लड़कियों ने आत्महत्या कर ली। इसी तरह बाल मजदूर बढ़ गए हैं। बच्चों की तस्करी हो रही है। बच्चों की कम उम्र में शादी कर दी जा रही है। हमें बच्चों की बढ़ती परेशानी को देखते हुए संस्था और व्यक्तिगत स्तर पर उनकी मदद के लिए आगे आने की जरूरत है।


Comments

Popular posts from this blog

स्वच्छ पर्यावरण, सुरक्षित बिहार जैविक पॉलिथीन प्लांट लगा कर बनें उद्यमी

Coolie No. 1 Available For download MovieRulz in HD quality | MP4 | 720p

बिहार चुनाव की तिथि घोषित